मन लागो यार फकीरी में
'मन लागो यार फकीरी में'
लगभग पिछले महीने भर से गाॅव में हूॅ ।इन दिनों गेहूॅ समेटने
में चाचाजी का हाथ बटाॅ रहा हूॅ । गेहूॅ की फसल अबकी बार पिछले सालों की
तुलना में काफी कमजोर हुई है , जिससे चाचाजी के माथे पर चिंता की लकीर साफ
देखा जा सकती है ।
एक तो बेमौसम बारिश और ओलों ने पहले हीं किसानों का कमर
तोड़ कर रख दिया है , उस पर से मजदूर ना मिलने के कारण किसानो की परेशानी
और बढ़ गई है । वैसे चाचाजी की चिंता और भी कई बातों को लेकर है ।उन्हे अब
तक गन्ने का पेमेंट नहीं मिला है ।हमरे गाॅव करियन (जो बिहार के समस्तीपुर
में है ) के किसान गन्नें को उपजाकर-कटवाकर जिले के हसनपुर चीनी मिल को
बेचते हैं । आज गन्ना के ट्रक को भेजे हुए मास बीत रहा है किंतु चाचाजी के
खाते में अब तक पैसे नहीं आए हैं ।
असमय हुई बारिश और तूफान के चलते गेहूॅ के पौधे जमीन पर गिर
पड़े हैं , जिससे उसे काटना काफी मुश्किल हो गया है ।कोई भी मजदूर गेहूॅ
काटने को तैयार नहीं है , जिससे खेतिहड़ो की परेशानी और बढ़ गई है ।
मुझे याद आ रहा है एक वक्त था , जब मजदूर साॅझ ढ़लते हीं
खेतों पर जाकर लेट जाया करते थे और सुबह के चार बजते हीं गेहूॅ की कटाई
प्रारंभ हो जाया करती थी ।गेहूॅ काटने के लिए गिरहत (किसान) की जी हजूरी
किया करते थे ।और एक आज का वक्त है दस बुलाओ तो एक-दो मजदूर आते हैं ।जिस
पर की बोईन (मेहनताना) भी वो खुद की मर्जी का लेते हैं ।
कल का पूरा दिन ज़िरात (गाॅव के पूरब स्थित खेत) में लगे
गेहूॅ के फसल को कटवाते-थ्रेसिंग करवाते गुजर गया ।पूरे तीन बीघे में लगे
फसल से मात्र 24 क्विंटल गेहूॅ हुआ , वही उस ओर भूसों का अंबार लग गया ।
रमजपुआ जो मेरे जन्म के पहले से मेरे खेतों में काम करता आ रहा है , बता
रहा था कि इस खेत की इतनी बुरी उपज उसने कभी नहीं देखी । कइसनो स्थिति में
40-50 क्विंटल अन्न हो हीं जाता था ।
वहीं अबकी बार गेहूॅ का दाना सूखकर जीरा सदृश हो गया है ,
हल्का और छोटा । जौ पौधे गिर पडे , उसमें तो दाना हीं नहीं पड़ा । दाना
पतला और काला रंग का हुआ है ।
इस बार मकई (मक्का) के फसल की स्थिति भी अच्छी नहीं है ।फिर
भी चाचाजी मकई के ठीक-ठाक हो जाने के प्रति आशान्वित हैं ।वो कहते हैं कि
किसान हार कहाॅ मानता है , उसका काम तो बीज बोना है बाॅकी उपरवाले की मर्जी
।
इसी बीच उनसे अपने शहर जाने की बात भी कह दिया है ।उन्होने
बताया कि राज़मा और धनियाॅ बेचकर वो मुझे जल्द हीं आगे की पढ़ाई करने को
भेज देंगें ।अब मुझे उनमे कबीर नजर आने लगे हैं और मैं मोबाईल पर अबीदा
परवीन के दिल़कश स्वर में कबीर को सुनने लगा हूॅ -'मन लागो यार फकीरी में'
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